डिजिटल होते समाज के अनुरूप सरकार और संसद भी कानूनी व्यवस्था के सॉफ्टवेयर को अपडेट करें तो अर्थव्यवस्था का लॉकडाउन भी जल्द खत्म होगा

सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री तो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बनना चाहते हैं। लेकिन दोनों की राह में मोबाइल रिकॉर्डिंग और हैकिंग अड़ंगे लगा रही हैं। पायलट की उड़ान रोकने के लिए गहलोत सरकार ने विधायकों की खरीद-फरोख्त की रिकॉर्डिंग करवा के एसओजी जांच शुरू करवा दी, तो अमेरिकी सत्ता की होड़ में सोशल इंजीनियरिंग से ट्विटर का सिस्टम ही हैक करवा दिया गया।

डिजिटल कंपनियों के इस खतरे को भांपते हुए ही दो दिन पहले यूरोपीय समुदाय ने अमेरिका जा रहे डाटा शेयरिंग के डिजिटल एग्रीमेंटस पर रोक लगा दी है। भारत में कोरोना से ठप पड़े देश में दबे पांव डिजिटल का साम्राज्य स्थापित हो गया, जिसे चौथी औद्योगिक क्रांति बताया जा रहा है।

साइबर औद्योगिक क्रांति के महानायक गूगल, फेसबुक, अमेज़न, अलीबाबा और एप्पल जैसी कंपनियों के आगे बड़े देशों की सरकारें भी सिमटने लगी हैं। भारत में इस डिजिटल क्रांति की बागडोर को वैश्विक कंपनियों से छीनकर रिलायंस के मुखिया मुकेश अंबानी दुनिया के छठवें सबसे बड़े रईस बन गए हैं।

54 साल पुरानी कंपनी के नए उपक्रम जियाे प्लेटफार्म की हिस्सेदारी बेचकर 2.12 लाख करोड़ हासिल करके रिलायंस कर्ज मुक्त होने का दावा कर रही है। भारत में नए संसाधन जुटाकर ही सरकारी योजनाओं को सफल बना सकते हैं। देश में सरकारी कंपनियों के विनिवेश और बिक्री से 2.11 लाख करोड़ रुपए हासिल करने का सालाना लक्ष्य रखा गया है, इसलिए इस नई डिजिटल क्रांति से राज्य और केंद्र सरकारों को बड़े सबक लेने चाहिए।

सस्ते स्मार्टफ़ोन और डाटा प्लान के दो विकट हथियारों से लैस डिजिटल कंपनियां वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग, शिक्षा, मनोरंजन, फिल्म, गेमिंग, मीडिया, खुदरा, ई-कॉमर्स, किराना, बैंकिंग, संचार, डिजिटल पेमेंट, स्वास्थ्य और चुनावी राजनीति जैसे सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आधिपत्य जमा रही हैं। टेलीकॉम या दूसरी औद्योगिक क्रांति से हुए विकास से सरकारों को लंबी-चौड़ी रकम मिलती थी।

दस साल पहले 2जी की नीलामी में 1.76 लाख करोड़ के घोटाले पर सीएजी के हो हल्ले के बाद केंद्र में सरकार ही बदल गई। अब 2015 के बाद दूरसंचार से सरकार को शायद ही आमदनी हुई हो। नए दौर में सरकार और जनता वैश्विक डिजिटल कंपनियों के लिए डाटा हासिल करने का प्लेटफार्म बन गए हैं। एकांगी डिजिटल क्रांति से परंपरागत क्षेत्रों में रोजगार में भारी कमी आई है, जबकि नए रोजगार थोड़े ही बढ़ रहे हैं।

डिजिटल के नियमन के लिए सही टैक्स व्यवस्था लागू नहीं करने से सरकारों की आमदनी भी कम हो रही है। डिजिटल की वजह से अर्थव्यवस्था के खस्ताहाल को समझने के लिए 80 करोड़ वंचित लोगों को जानना जरूरी है, जो भूख मिटाने के लिए सरकारी मदद पर आश्रित हो गए हैं।

औद्योगिक क्रांति की सफलता के बाद खेती और पशुपालन से जुड़े लोग सरकारी मदद के मोहताज होकर नेताओं की वोटर लिस्ट में सिमट गए। अब साइबर क्रांति के विस्तार के बाद टेलीकॉम कंपनियां भी इतिहास की गर्त में जाने को तैयार हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 16 टेलीकॉम कंपनियों पर 1.47 लाख करोड़ भुगतान की जवाबदेही बन गई है।

सरकारी देनदारी के अलावा इनपर बैंकों के भारी कर्ज हैं। टेलीकॉम सेक्टर डूबने से बैंकों को चार लाख करोड़ रुपए की चपत लग सकती है। रिलायंस कम्युनिकेशन समेत पॉवर कंपनियों के मालिक अनिल अंबानी 12 साल पहले विश्व के छठवें अमीर व्यक्ति थे। कुछ महीनों पहले लंदन की अदालत में फाइल अर्जी के अनुसार उनकी नेटवर्थ जीरो हो गई है।

उनकी कंपनियों पर 1 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज भी है। किसी जमाने में बीएसएनएल और एमटीएनएल का सरकारी फ़ोन हासिल करने के लिए सांसदों और मंत्री की सिफारिश लगती थी। अब दस सबसे ज्यादा घाटे वाली सरकारी कंपनियों में शुमार दोनों टेलीकॉम कंपनियों का कोई खरीदार भी नहीं है।

भारत में टेलीकॉम क्षेत्र की विफलता के लिए कुछ अजब बातों पर गौर करके कौटिल्य के अर्थशास्त्र के नियमों पर फिर से अमल जरूरी है। सन 2003 के बाद कॉल रिसीव करने पर चार्ज ख़त्म हो गया। इसके बावजूद अन्य सेवाओं पर मोबाइल कंपनियां ग्राहकों से पैसा वसूलकर सरकार को लाइसेंस फीस समेत अनेक मदों पर भारी रकम का भुगतान करती हैं।

फिर भी देश के अनेक इलाकों में मोबाइल नेटवर्क पर बात नहीं हो पाती। दूसरी तरफ वॉट्सएप न तो ग्राहकों से फीस लेता है और न ही सरकार को कोई भुगतान करता है, इसके बावजूद जनता, अफसर, विधायक, सांसद, मंत्री और जज सभी वॉट्सएप पर आसान और सुरक्षित तरीके से बात कर लेते हैं।

डिजिटल कंपनियों के फ्री के फर्जीवाड़ा को समझने में समाज और सरकार की विफलता से टेलीकॉम सेक्टर शहीद होकर, डिजिटल तले दफन हो रहा है। कोरोना से लड़ने के लिए विश्व के 83 बड़े रईसों ने ज्यादा टैक्स देने की जो इच्छा जाहिर की है, उसे वैश्विक डिजिटल कंपनियों को अपनाना चाहिए। डिजिटल होते समाज के अनुरूप सरकार और संसद भी कानूनी व्यवस्था के सॉफ्टवेयर को अपडेट करें तो अर्थव्यवस्था का लॉकडाउन भी जल्द ख़त्म हो जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील


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