आतंक से झुुलसी घाटी में कश्मीरी पंडितों, सिखों का दर्द रंगों से बयां करते जमीर; संदेश यही कि मजहब बैर रखना नहीं सिखाता

मुदस्सिर कुल्लू . जम्मू-कश्मीर के बारामूला में रहने वाले जमीर अहमद शेख (39) ने सिर्फ 5 साल की उम्र में पिता अब्दुल हमीद शेख से पेंटिंग सीखनी शुरू कर दी थी। जब से उन्हें कश्मीर के हालात की समझ हुई, तब से वे कश्मीरी पंडितों, मुसलमानों और सिखों की पीड़ा को तस्वीरों के जरिए सामने ला रहे हैं।

जमीर कहते हैं, ‘हमारी अगली पीढ़ी को यह मालूम होना चाहिए कि कश्मीरी किन हालातों से गुजरे हैं।’ उनकी एक तस्वीर 1990 के हालात बयां करती है। तब कई कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी। इनमें से कई ऐसे थे, जिनके रिश्तेदार आतंकी हमलों के कारण पहले ही कश्मीर घाटी छोड़ चुके थे। ऐसे में मारे गए कश्मीरी पंडितों को वहां के मुसलमानों ने कंधा दिया।

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इस तस्वीर में कश्मीरी पंडितों के शवों को कंधा देते मुसलमान दिखाई दे रहे हैं। संदेश यही है कि धर्म बैर रखना नहीं सिखाता।

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कश्मीर के कई घरों में सैलानियों के कारण ही चूल्हा जलता है। कर्फ्यू के दौरान शिकारा वालों पर रोजी का संकट दिखाती तस्वीर।


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जमीर जब 11 साल के थे, तब गोलीबारी में उनके पिता की मौत हो गई थी। जमीर के एक भाई डॉक्टर, एक इंजीनियर हैं।


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