प्रशांत भूषण मामले में कोर्ट ने बस खोया है, पाया कुछ नहीं; अब तो वापसी के सारे दरवाजे भी बंद हो गए

फैसला जो भी हो, यह तय है कि प्रशांत भूषण के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की मानहानि का मुकदमा भारत के न्यायिक इतिहास में दर्ज हो चुका है। प्रशांत भूषण ने अपने पर मुकदमा चलाने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। जिसने भी प्रशांत भूषण को ठिकाने लगाने की योजना बनाई होगी, वो फिलहाल अपने जख्मों को सहला रहा होगा।

प्रशांत भूषण को अगर सजा नहीं मिलती है, तो हो सकता है कि वे हीरो साबित हो जाएं। और अगर सजा मिलती है तो भी संभावना है कि उन्हें हीरो का दर्जा दिया जाए। पूरी तैयारी के साथ किए गए हमले के सामने प्रशांत भूषण विचलित नहीं हुए, डरे नहीं, फिसले नहीं। अपने 134 पेज के हलफनामे में उन्होंने पिछले चारों मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकलाप में हुई अनियमितताओं का इतना सटीक और प्रमाणिक ब्योरा दिया कि किसी को जवाब देते नहीं बना।

प्रशांत ने देशभर के लाखों लोगों में साहस भर दिया

कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने के बावजूद प्रशांत भूषण ने विनय और दृढ़ता की जो मिसाल पेश की उसने अचानक देशभर में लाखों लोगों में साहस भर दिया है। हमारे सार्वजनिक जीवन में व्याप्त शून्य और दिन-रात अपना और एक-दूसरे का कद छोटा करते हुए नेताओं की भीड़ में पिछले एक महीने में प्रशांत भूषण का कद अचानक बहुत ऊंचा हो गया है।

देश के महान्यायवादी केके वेणुगोपाल इस मुकदमे के दूसरे बड़े नायक के रूप में उभरे हैं। बहुत समय बाद देश ने एक महान्यायवादी को देखा जो सरकारी वकील के बतौर नहीं, बल्कि अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी के अनुरूप न्याय के पक्ष में खड़ा हुआ है। इस मुकदमे में कदम-कदम पर महान्यायवादी को नजरअंदाज किया गया, उन्हें सुनने से इनकार किया गया, बोले तो चुप कराया, लेकिन अंततः 25 अगस्त को वेणुगोपाल बोले। और वह बोले तो उन्होंने सबको चुप करवा दिया, मुकदमा वहीं पलट गया। स्वरा भास्कर के मामले में भी वह इशारा कर चुके हैं कि अब सरकार को न्याय व्यवस्था में एक असहमति के स्वर का मुकाबला करना होगा।

वकीलों ने साबित कर दिया कि वो न्याय व्यवस्था की रक्षा में डटे हुए हैं

इस मुकदमे के तीसरे नायक इस देश के वकील रहे, जिन्होंने साबित कर दिया कि इतिहास के इस दौर में न्याय व्यवस्था की रक्षा में वे डटे हुए हैं। पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे और फिर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने जिस हिम्मत, समझदारी और बारीकी से अदालत के सामने अपना पक्ष रखा है, वह वर्षों तक देश के लॉ स्कूल में पढ़ाया जाएगा।

उन्होंने साफगोई से अदालत के सामने उस बात को रखा जिसे अब तक कोर्ट-कचहरी के गलियारों में कानाफूसी में कहा जाता था। प्रशांत भूषण के वकील सहयोगियों के अलावा देशभर के पूर्व न्यायाधीश, वरिष्ठ वकील, अधिवक्ता संघ और बार एसोसिएशन जिस तत्परता से खड़े हुए, उसने यकीन बनाया कि इस देश में न्याय व्यवस्था से उम्मीद पूरी तरह छोड़नी नहीं चाहिए।

काश नायकों की इस सूची में अदालत को भी जोड़ा जा सकता। लेकिन सच यह है कि अब तक इस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने खोया ही खोया है, पाया कुछ नहीं है। आज से एक महीना पहले तक कुछ लोगों के मन में सुप्रीम कोर्ट के बारे में जो शक था, वो आज विश्वास में बदल गया होगा। इस मुकदमे में अदालत की जल्दबाजी और एकतरफा रुख ने प्रशांत भूषण के सारे आरोपों को अपने आप साबित कर दिया। साख और मान से भी बड़ा नुकसान सुप्रीम कोर्ट के इकबाल को हुआ है।

इस बार कोर्ट-कचहरी की खुलकर आलोचना हो रही

कोर्ट-कचहरी की आलोचना दबे-छुपे स्वर में पहले भी होती थी, लेकिन इस बार शायद कोर्ट को खुलकर इसका सामना करना पड़े। जिस तरह अदालत प्रशांत भूषण से माफ़ी मंगवाने के फेर में दिखी, ऐसी स्थिति शायद ही किसी अदालत की दिखाई दी हो। अब कोर्ट के पास अंतिम मौका है। हालांकि उसने अपने लिए वापसी के रास्ते बंद कर रखे हैं। अगर सजा देते हैं तो सब तरफ से निंदा हो सकती है, अगर छोड़ देते हैं तो जग-हंसाई होगी। क्या अदालत और कोई तीसरा रास्ता खोजते हुए अपनी इज्जत और न्याय प्रियता की छवि दोनों को बचा सकती है?

इस प्रकरण में एक पांचवां और अदृश्य खिलाड़ी भी है, जिसने पहले प्रशांत भूषण को टंगड़ी लगाने की योजना बनाई होगी, जिसने सोचा होगा की प्रशांत भूषण का मुंह बंद करने से कितने जन आंदोलनों और लोकतांत्रिक आवाजों को दबाया जा सकता है, जिसने प्रशांत भूषण को ठिकाने लगाने वालों के लिए इनाम की व्यवस्था की होगी। वह अदृश्य हाथ पीछे जरूर हटा है, लेकिन खाली बैठे-बैठे भी उस हाथ के नाखून बढ़ रहे हैं। एक वार तो खाली गया लेकिन उसने दूसरे वार की तैयारी शुरू कर दी होगी। लड़ाई बहुत लंबी होगी। प्रशांत भूषण ने इस बड़ी लड़ाई की हिम्मत बंधाई है। अब उस लंबी लड़ाई की तैयारी शुरू करनी होगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिया


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34wTHNp
via IFTTT

Post a Comment

और नया पुराने