29 अगस्त को खेल दिवस के मौके पर खिलाड़ियों और कोचों को नेशनल स्पोर्ट्स अवॉर्ड्स दिए जाएंगे। इस बार के अवॉर्डी तो 68 हैं। सभी की कहानी बहुत संघर्ष से भरी हुई है। लेकिन, हम 6 की कहानी दे रहे हैं। मप्र के सतेंद्र सिंह लोहिया तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड पाने वाले देश के पहले पैरा स्विमर हैं।
वहीं, 6 बार विंटर ओलिंपिक में खेल चुके ल्यूश स्टार शिवा केशवन और महाराष्ट्र के पैरा स्विमर सुयश जाधव को अर्जुन अवॉर्ड अवॉर्ड मिलेगा। पावरलिफ्टर तैयार करने वाले विजय भाइचंद्रा मुनिश्वर को 11 सिफारिश के बाद द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिल रहा है। 5 बार के नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन लक्खा सिंह और उप्र के पैरा एशियन गेम्स मेडलिस्ट सत्यप्रकाश तिवारी को ध्यानचंद अवॉर्ड मिलेगा।
शिवा केशवन: चैरिटी जुटाकर ओलिंपिक खेला, 22 साल संघर्ष के बाद मिलेगा अवॉर्ड
1998 विंटर ओलंपिक में शिवा 16 साल की उम्र में खेले और वे इस गेम में दुनिया के सबसे युवा ओलिंपियन बन गए थे। 2011 में उन्होंने भारत को पहली बार एशियन ल्यूश गोल्ड दिलाया। ये मेडल उन्होंने किराए की स्लेज से जीता था। उनकी अपनी स्लेज ठीक नहीं थी, इसलिए उन्होंने जापानी एथलीट से स्लेज उधार ली थी।
वे लगातार चैरिटी जुटाकर आगे बढ़ते रहे। 2014 सोच्चि ओलंपिक में भी चैरिटी जुटाकर ही खेले थे। 22 साल इस गेम में अकेले ही भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले शिवा को अब जाकर अर्जुन अवॉर्ड मिल रहा है।
विजय भाइचंद्रा मुनिश्वर: अपने खर्चे पर खिलाड़ियों को टूर्नामेंट में हिस्सा लेने भेजते रहे
मुनिश्वर 1995 से ही पावरलिफ्टर को तैयार कर रहे हैं। वे अपने खर्च से खिलाड़ियों को टूर्नामेंट में भेजते रहे हैं। उनके नाम की सिफारिश इससे पहले 9 बार पैरालिंपिक कमेटी ऑफ इंडिया कर चुकी थी जबकि दो बार उनके तैयार किए खिलाड़ी अवॉर्ड की मांग कर चुके थे। वे अकेले ही खिलाड़ियों के लिए स्पॉन्सर तलाशते और फिर उन्हें टूर्नामेंट में भेजते। कई बार इसमें कामयाबी मिलती लेकिन बहुत बार उनकी मां ही उनके पिता के पेंशन के पैसे से बच्चों को स्पॉन्सर करती।
सतेंद्र सिंह: गलत इलाज के कारण नि:शक्त हो गए थे, 13 साल की मेहनत के बाद मिला फल
सतेंद्र बचपन में गलत इलाज के कारण पैरों से नि:शक्त हो गए। उन्होंने तैराकी को ताकत बनाया। इंग्लिश चैनल और कैटरीना चैनल तैरकर पार करने का रिकाॅर्ड बनाया। सतेंद्र बताते हैं, “ग्वालियर में कॉलेज के दौरान 2007 में पढ़ाई के साथ-साथ स्वीमिंग सीखी। खुद का खर्च चलाने के लिए फोटोकॉपी की दुकान पर काम किया। पिता के साथ मजदूरी की, सेल्समैन बने, क्लर्की की, टीचिंग भी की। अब डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स में कार्यरत हूं।’ सतेंद्र की उपलब्धि के पीछे 13 साल का संघर्ष है।
लक्खा सिंह: गैस स्टेशन पर काम किया, टैक्सी तक चलाई; फिर कोचिंग देना शुरू किया
बॉक्सिंग कोच लक्खा 5 बार के नेशनल चैंपियन रहे। वे 1998 में अमेरिका वर्ल्ड मिलिट्री बॉक्सिंग चैंपियनशिप के लिए गए और वहां से लौटे नहीं। वे प्रो-बॉक्सिंग में करिअर बनाना चाहते थे। लेकिन अमेरिकी आर्मी ने उन्हें भगौड़ा घोषित कर दिया। वे कभी गैस स्टेशन पर, कभी रेस्टोरेंट पर तो कभी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते रहे। 8 साल बाद वे वहां से लौटे और टैक्सी चलाना शुरू किया। 11 साल तक टैक्सी चलाने के बाद 2017 में उन्हें उनके पुराने कोच मोहंती सर ने नौकरी दिलाई। तब से वे रांची में ट्रेनिंग दे रहे हैं।
सुयश जाधव: करंट लगने से हाथ गंवाए, मंदिर में जीने की राह मिली
पैरा स्विमर सुयश ने 2004 में भाई की शादी में करंट लगने से अपने हाथ गंवा दिए थे। तीन साल कुछ नहीं कर पाए। मंदिर में जीने की राह मिली। 2007 में वे अपने परिवार के साथ मंदिर में गए, जहां उनके पिता और भाई तैरने लगे। सुयश स्वीमिंग जानते थे और वे भी तैरने की कोशिश करने लगे। जब पिता ने उन्हें अच्छे से तैरते हुए देखा तो उन्हें कॉन्फिडेंस आया। 2009 में पहला इंटरनेशनल मेडल जीता। 2016 रियो पैरालिंपिक में भी हिस्सा लिया। अब टोक्यो पैरालिंपिक के लिए तैयारी कर रहे हैं।
सत्यप्रकाश तिवारी: 16 की उम्र में ट्रेन हादसे में दोनों पैर गंवा दिए थे, पैरा बैडमिंटन खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे
सत्यप्रकाश बचपन में क्रिकेट खेला करते थे। लेकिन 1981 को ट्रेन हादसे में पैर गंवा दिए। चार महीने इलाज चला। कॉलोनी में रहने वाले पैरा स्विमर की सलाह पर एथलेटिक्स की प्रैक्टिस शुरू की। टूर्नामेंट भी खेला, लेकिन मेडल नहीं जीत सका। 2002 में बैडमिंटन खेलना शुरू किया। वर्ल्ड कप, एशियन चैंपियनशिप में एक गोल्ड, दो सिल्वर, चार ब्रॉन्ज मेडल जीते। 2013 में खेल से संन्यास लिया। अब मुंबई में पैरा बैडमिंटन खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
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