यह लेख इस बारे में नहीं है कि कांग्रेस खुद का पुनरुत्थान कैसे कर सकती है। ऐसी उम्मीद जताने से मेरी ही खिल्ली उड़ेगी। हालांकि, कांग्रेस इस बारे में शानदार सबक देती है कि बतौर लीडर क्या नहीं करना चाहिए। ये रहे कॉर्पोरेट्स या स्टार्टअप्स या संस्थानों के मौजूदा और भावी लीडर्स के लिए 10 व्यावहारिक सबक-
जूनियर्स को दोष न दें: जब कई कांग्रेस नेताओं ने चिंताएं व्यक्त करने का साहस जुटाया, तो नेतृत्व की पहली प्रतिक्रिया थी, पत्र लिखने वालों को दोषी ठहराना। उन्होंने उन्हें गद्दार कहा और पत्र लिखने के समय पर सवाल उठाए। चिंताओं की चर्चा नहीं की। बतौर लीडर ऐसा न करें। जिम्मेदारी लें, टीम की सुनें।
फिजूल मीटिंग्स में समय बर्बाद न करें: कार्यसमिति की 7 घंटे की बैठक एक नाटक थी। बैठक की जगह 6 शब्दों का ईमेल किया जा सकता था- मैं कहीं नहीं जा रही हूं। बतौर लीडर, अपना और टीम का समय बर्बाद न करें।
डायनासोर न बनें: भारतीय परंपराओं और इतिहास में जड़ें होने के बावजूद भाजपा सबसे ज्यादा तकनीकी कौशल वाली पार्टी है। भाजपा एमेजॉन जैसी है, लगातार बढ़ती हुई, नई सीमाएं खोलती हुई। उधर कांग्रेस लालाजी की दुकान जैसी है, जहां लालाजी मिठाई से मक्खी न उड़ाने पर सेवकों को डांटते हैं। कभी लालाजी न बनें।
आंखें बंद न रखें: एक होता है विशेषाधिकार, और फिर आता है बेहिसाब, संपूर्ण और आंखें बंद करने वाला विशेषाधिकार, जैसा राहुल गांधी के पास है। कई लोग अपने विशेषाधिकार खुद जानते हैं। वे हुनर पहचानकर उसका सम्मान करते हैं, उसके साथ काम करते हैं और सफल होते हैं। हालांकि, राहुल गांधी जैसा महान विशेषाधिकार दुनिया को अलग ढंग से देखता है। आपको लगता है कि आप राज करने के लिए ही बने हैं। कोई भी नकारात्मक प्रतिक्रिया मूर्खता और लोगों की जलन लगती है। बतौर लीडर आत्म-जागरूक रहें।
मतदाता (या ग्राहक/श्रोता) को नजरअंदाज न करें: अगर आप किसी की सेवा के व्यापार में हैं, तो उन्हें नजरअंदाज न करें। भारत 2011 से कांग्रेस से बदलने को कह रहा है। लेकिन लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व हेडफोन लगाए है, जिसमें तेज संगीत बज रहा है। भारतीय नहीं चाहते कि गांधी कांग्रेस का नेतृत्व, नियंत्रण करें या अप्रत्यक्ष रूप से उसे प्रभावित करें। क्या? आपने क्या कहा? माफ कीजिए, संगीत बहुत तेज है।
कम प्रतिबद्ध न रहें: आपको अधीनस्थों से ज्यादा मेहनत करनी होगी। सच्चे आंत्रप्रेन्योर बहुत मेहनत करते हैं। सभी जानते हैं कि पीएम कितने घंटे काम करते हैं। एलन मस्क, जुकरबर्ग, सुंदर पिचाई, ये सभी मेहनत करते हैं। कांग्रेस के पत्र ने बताया कि नेतृत्व पूरे समय काम नहीं कर रहा। ऐसा न करें।
अपनी सीमाएं नजरअंदाज न करें: एक राजनीतिज्ञ के लिए अच्छी भाषणकला जरूरी है। राहुल गांधी एक स्पष्ट, बिना स्क्रिप्ट वाला, जोशपूर्ण भाषण नहीं दे सकते। यह आलोचना नहीं है। ज्यादातर लोग ऐसा नहीं कर पाते। इसी तरह, राजनेता को लोगों की नब्ज पकड़ना जरूरी है। राहुल ऐसा नहीं कर सकते। अच्छे राजनेता को जरूरत के मुताबिक गठजोड़ करना, सहयोगी को छोड़ना और नंबर हासिल करने के लिए कुछ चालें चलना आना चाहिए। राहुल ने ऐसा कभी नहीं दिखाया। समस्या सीमाएं होना नहीं है, बल्कि उन्हें समझ न पाना है। अच्छे लीडर अपनी कमजोरियां जानते हैं और उन्हें दूर करने के लिए कदम उठाते हैं।
चमचों से न घिरे रहें: अगर टीम हमेशा आपकी तारीफ करती है, कहती है कि वह आपके बिना नहीं जी सकती, तो वह बेकार है। चमचे वृद्धि में सबसे बड़ी बाधा हैं। भाजपा भी इससे अछूती नहीं है लेकिन कांग्रेस की चापलूसी अलग स्तर की है। हार के बावजूद चापलूस कांग्रेस नेताओं को घेरे रहे और उन्हें सुनिश्चित करते रहे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। बतौर लीडर, कोई चापलूस न रखें।
कायर न बनें : अगर आपमें बुद्धिमत्ता या कुछ कौशलों की कमी है आप होशियार या योग्य व्यक्ति को नियुक्त कर सकते हैं। लेकिन आप हिम्मत को नौकरी पर नहीं रख सकते। नेता बनने के लिए साहसिक कदम उठाने होते हैं। इसमें गांधी दोषी नहीं हैं। यहां अन्य कांग्रेस नेता दोषी हैं, जो जानते हैं कि चीजों में बदलाव की जरूरत है, लेकिन उनमें हिम्मत की कमी है। वे डरे हुए हैं कि उन्होंने आवाज उठाई, तो बाकी चापलूस हमला कर देंगे। मुख्यमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री मोदी बनने के लिए भाजपा के कद्दावर नेता को पीछे छोड़ा। अब यह बड़ी बात नहीं लगती, लेकिन यह जोखिम भरा कदम था जो उनका कॅरिअर खत्म कर सकता था। बतौर लीडर, साहस दिखाएं।
स्वार्थी न बनें: आज कमजोर कांग्रेस के कारण देश में कोई वास्तविक विपक्ष नहीं है। यह हमारे लोकतंत्र और देश के संस्थानों के लिए खतरनाक है। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व को भारत या उसके लोकतंत्र की परवाह नहीं है। आप एक संगठन चला रहे हैं तो सार्वजनिक हित के बारे में सोचें। यह एक नेता को महान बनाता है।
मैनेजमेंट और लीडरशिप के ऐसे मूल्यवान सबक देने के लिए कांग्रेस धन्यवाद की पात्र है। उम्मीद है कि वे ऐसे ही रहें और धीरे-धीरे टूटना जारी रहे, ताकि युवा भारतीयों की एक पीढ़ी उनसे जीवन के महत्वपूर्ण सबक ले सके।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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